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स्तवन- संग्रह |
॥ चौथा पद ॥
वालेसर मुझ वीनती गोडीचा, अलवेसर अवधार हो गोडीचाराय ॥ प्रगट थई पातालथी गोडोचा, सेवक जिन साधार हो गो० ॥ वा ० ॥ १ ॥ आँख थई ऊतावली, गो० ॥ दरसण देखण का ज हो ॥ गो० ॥ पांणीनखमे पातली, गो० ॥ द्यो दरसण महाराज हो || गो० ॥ वा० ॥ २ ॥ तूं साहिब सुपनंतरे, गो० ॥ मिलियो छै निक मेव हो || गो० ॥ तोषिण आया ऊमही, गो० । संप्रति करवा सेव हो, गो० ॥ वा० ॥ ३ ॥ जो पातानो त्रेवडो, गो० ॥ सगलो भाति सदीव हो, गो० ॥ उंची नीची वातमें, गो० ॥ थे मति घालो जीव हो || गा० || वा० ॥ ४ ॥ देव घण ही देवल, गो० ॥ दीठां ते न सुहाय हो । गो० इक दीठां मन ऊलसे, गो० ॥ इक दोठां उल्हाय हो ॥ गो० ॥ वा० ॥ ५ ॥ काले वा माहरे, गो० ॥ कीधी खरी सभीड हो । गां० ॥ दरसण
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