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अभय रत्नसार ।
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सुत वरदाय, निरमल नांणी रे ॥ १ ॥ पांच कमल प्रभु अंग, निरुपम निरख्या रे || तीन कमल मुझ संग आतम हरख्यारे ॥ २ ॥ वंदन महोदय देख, चंद लजा रे ॥ गगन भने निसदीस, इम मन आंणुं रे ॥ ३ ॥ सुरमणि ज्युं सुखकार, नयण विराजै रे ॥ हृदयकमल सुविलास, थाल ज्युं छाजै रे ॥ ४ ॥ प्रभु कर चरण विलोक, पंकज हास्योरे ॥ ततखिण निज संवास, जलमें धास्त्रो रे ॥ ५ ॥ इम सरवंग उदार, श्रीजिनराया रे ॥ साचै पुण्य संयोग, साहिब पाया रे ॥ ६ ॥ प्रभुगुण अनुभव नीर, सांग सुरंगे रे ॥ टाल्यो पातिक पंक, आतम संगेरे ॥ ७ ॥ वरस अढार चोतीस, वदि वैसाखे रे ॥ मनुहर पांचम दीस, सहु संघ साखै रे ॥ नगर महेवा मांहि, पास जुहास्या रे ॥ श्रीजिनचन्द मुणिंद, वांछित सा
खारे ॥ ६ ॥
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