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स्तवन- संग्रह |
॥ आलोयण - वृद्धं स्तवन ॥ ॥ बे कर जोड़ी वीनं जी, सुणि स्वामी सुविदीत ॥ कूड़ कपट मूंकी करी जी, बात कहूं आप वीत ॥ १ ॥ कृपानाथ मुझ विनती अवधार, ए प्रकरणी ॥ तू समरथ त्रिभुवन धरणी जी, मुझने दुत्तर तार ॥ कृ० ॥ २ ॥ भवसागर भमतां थकां जी, दीठां दुख अनंत ॥ भागसंयोगे भेटियो जी, भय भंजण भगवंत ॥ कृ० ॥ ३ ॥ जे दुःख भांज आपणाजी, तेहने कहिये दुक्ख ॥ परदुख भंज
तूं सुण्यो जी, सेवगने द्यो सुक्ख ॥ कृ ॥ ४ ॥ आलोयण लीधां पखै जी, जीव रुले संसार ॥ रूपी लक्ष्मणा महासती जी, एह सुरायो अधिकार ॥ कृ० ॥ ५ ॥ दूषमकाले दोहिलो जी, सूधो गुरु संयोग || परमारथ पीछे नहीं जी, गडरप्रवा ही लोक ॥ कृ० ॥ ६ ॥ तिए तुझ आगल आपरखा जी. पाप आलोउं आज ॥ माय बाप आगल बोलतां जी, बालक केहो लाज ॥ कृ० ॥ ७ ॥
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