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स्तवन-संग्रह |
आज भले हुं आयो रे ॥ ० ॥ ५ ॥ ताहरी म हिर लहिरनो लटकौ, जो जगगुरु हूं पाउं रे || सहजे एक पल में अदभुत, आतम गुण उपजा उरे ॥ ० ॥ ६ ॥ मरुदेवानन्दन जग वंदन, स्वामी दरसण दीजै रे || लाभउदय जिनचंद लहीने, सगला कारज सीर्फे रे ॥ ० ॥ ७॥ ॥ श्री अजितनाथजी का स्तवन ॥
॥ अनंत जीन आपज्यारे || एचाल || ज्ञानादिक गुण संपदा रे, तुझ अनंत अपार, ते सांभलतां ऊपनी रें, रुचि तिण पार उतार ॥ अजित जिन तारज्यो रे । तारज्यो दीनदयाल, अ० ॥ ता० ॥ १ ॥ ए प्रकरणी ॥ जे जे कारण जेहनो रे, सामग्री संयोग || मिलतां काय नीपजे रे, कर्त्ता तनय प्रयोग ॥ ० ॥ ० ॥ २ ॥ का र्य सिद्धि कर्त्ता वसु रे, लहि कारण संयोग ॥ निज पदकारक प्रभु मिल्यारे, होय निमित्तम भोग ॥ ० ॥ ता० ३ ॥ अज कुलगत केरीस
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