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३८६ स्तवन-संग्रह। निव्यासी कयरुक्खा ॥ हिव प्रतिमा ग्यान कहीजे रे, जिनवरनी आण वहीजै ॥ १४ ॥ पनरेसै बेता लीस कोडी रे, अड़वन लख अधिके जोड़ी ॥ छत्तीस सहस अधिक कहीयै रे, प्रतिमा सगली सरदहियै ॥ १५ ॥
॥ढाल ५ ॥ जोइस वितर प्रतिमा सासती, असंख्यात वलि जेहोजी॥पायकमल तेहना नित प्रणमियै, सोवन वरण सुदेहो जो ॥१॥ विनय करी जिन प्रतिमा वंदिय, सुन्दर सकल सरूपो जी, पूजै प्रतिमा चोविह देवता, वलिय विद्याधर भपो जी ॥२॥ वि० ॥ जिनप्रतिमा बोली जिन सारखी, हित सुख मोच निदानो जी । भवियणने भवसायर तारवा, प्रवहण जेम प्रधानो जी॥३॥ वि० ॥ जीवाभिगम प्रमुख मांहि भाखीयो, ए सहू अरथ विचारो जी ॥ सांभलतां भणतां सुख संपदा, हियडै हरख अपारो जो ॥ ४ ॥ वि०॥
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