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अभय रत्तसार ।
३८७
॥ कलश ॥ इम शासता प्रासाद प्रतिमा संथुण्या जिनवर तणा, चिहु नाम जिनचंद तणा त्रिभुवन सकलचन्द सुहावणा ॥ वाचनाचारिज समयसुन्दर गुण भणें अभिराम ए, त्रिह काल त्रिकरण सुद्ध होयज्यो सदा मुझ परणाम ए॥५॥ ॥ सूरत शहर शीतल जिन-चैत्यप्रतिष्ठा स्तवन॥ ___ भविजन पूजो रे शीतल जिनपती रे, नयना नन्दन चन्द ॥ प्रभूजी विराजै रे सूरत बिन्दरै रे, नंदादेवीना नंद ॥ १॥ भ०॥ जगहितकारी रे जिनजी अवतस्या रे, श्रीदृढरथ नृप गेह ॥ श्री वच्छ सोहे रे लांछन सूदरू रे ॥ कनक वर्ण प्रभु देह ॥ २॥ भ० ॥ विषह निवारी रे संजम संग्रह्यो रे, ला, केवलनाण ॥ सघन घनाघन जिम धर्म वरसता रे, विचरया त्रिभुवन भाण॥ भ० ३ वदनी प्रमुख जे शेष रह्या हता रे, च्यार अघाती कम ॥ दूर निवारया रे अनुक्रम तेहने रे, पाम्यूं
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