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अभय रत्नसार ।
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सोलस कुल गिरि तीस, मेरू वन अस्सी दस
कुरु गजदंते वीस ॥ मानुषोत्तर परवत च्यार २ सो अति सुन्दर वक्ष सकार
इखकार,
मकार ॥ ८ ॥
॥ हाल ३ ॥
॥ दिग्गजगिरि चालीस, असी द्रह सुजगीस कंचन गिर वरु ए, एक सहस धरु ए ॥ ६ ॥ वृत दीरघ वैताढ्य, वीस सत रसो आढ्य ॥ सतर महानदी ए, पंच चूला सदी ए ॥ १० ॥ जंबू प्रमुख दस रुक्ख, इग्यारैसै सत्तर सुक्क ॥ कुंड सय असीए, बीसजमगवसी ए ॥ ११ ॥
त्रासय
॥ ढाल ४ ॥
॥ त्रिण सहस सो एक निवारणं रे, जिनवर प्रासाद वखारण, वीस सोए अंक गुणियै रे, तीर्थंकर प्रतिमा थुणियै ॥ १२ ॥ त्रिण लाख सहस वलियासी रे, प्रतिमा आठसोने असी ॥ सरवालै सब मेलीजै रे, जिनवर प्रासाद नमीजै ॥ १३ ॥ आठ कोडि सत्तावन लक्खारे, दोयसै
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