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अभय रत्नसार ।
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हिये रे ॥ जा० ॥ चोमुख प्रतिमा च्यारो, आदिनाथ देव जुहारो रे ॥ जा० ॥ १५॥ सोवनमें साते धातो, गिमिंग रही दिनने रातो रे ॥ जा० ॥ मग चवदेसें चम्मालौ, जिस बिंबनो भाव निहालो रे ॥ जा० ॥ १६ ॥ श्रीमाली भोम सोभागी, जिणवरथी जसु लय लागी रे ॥ जा ० ॥ एहनी करणी वाहवाहो, इहां लीधो लखमी लाहो रे ॥ जा ॥१७॥ इडुंगरिये आवी, जिण जात्र करै मन भावी रे ॥ जा० ॥ जिहां तिहां पूज रचावै, नाटकिया नाच करावे रे ॥ जा० ॥ १८ ॥ रातीजोगो दियरावो, जिनवरना जस गुण गावो रे ॥ जा० साहमी वच्छल कीज्यो, जातड़लोनो जसलीजो रे ॥ जा• ॥ १६ ॥ थी आवी चाली, वातां केइ अचरज वाली रे ॥ जा० ॥ सुखिये छै जे कोई, अहि नांगे जोज्यो तेई रे ॥ जा० ॥ २० ॥ ए तीरथथी गुण गावै, जात्रानो फल ते पावे रे जा० ॥ ए तीरथ समतोल, कुण आवै रूपचंद बोले रे ॥ जा० ॥ २१ ॥ इति आबूजी स्तवनम् ॥
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