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अभय रत्नसार। ३८१ जा० ॥ एतो डुंगरियानो राजा, एहनी छै बारह पाजा रे ॥ जा० ॥ २॥ छह ऋतु वास वणायो, एतो चंपला अंबला छायो रे ॥ जा ॥ सरवर झरणा झाझा, जिहां तिहां वनवेल्या आमा रे॥ जा ॥३॥ भार अढारे वणराई, एतो इहांहिज निजरे आइ रे ॥ जा० ॥ दहदिसि परिमल आवै फूलड़ानो रंग सुहावै रे॥ जा० ॥ ४ ॥ ऊपर भूमि विसाला, देवल दीठा रलियाला रे॥ जा० विमलमंत्री वरदाई, चक सरि देवी सहाई रे ॥ जा०॥५॥ पोरवाड वंस वदीतो, जिण दलपति साहि जी तो रे ॥ जा०॥ देवल तेण करायो, पाहण आरास मंडायो रे ॥ जा० ॥६। झीणी २ कोरणी झस्यो, दल माखण जेम उकेयो रे जा० ॥ नवी २ भांति वणाई, जिहां तिहां कोरेणिया झिणाई रे॥ जा० ॥७॥ उत्तरे पाहण जेतो, जोखीजे पाहण तेतो रे॥ जा०॥ आदि जिनेसर सांमी, प्रतिमा थापी हितकारी रे ॥
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