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३८० स्तवन-संग्रह। कोड़ी सुसाधु बोजा, नमुंबे कर जोड़ ए ॥ २५ कलश ॥ इम अढो द्वीपे पनर करमा भूमी क्षेत्र प्रमाण ए, सिद्धांत प्रकरण तेह भाख्या वीस वि हरमांण ए॥श्रीनगर जेसलमेर संवत सतर गुण तीसै समै, सुखविजय हरख जिनंद सानिध नेह धरि ध्रमसा नमें ॥ २६ ॥ इति अढी द्वीप-स्तवन संपूर्णम् ॥१ जंबूद्वीप २ धातकी खंड ३ आधापुकरद्वीप एवं २॥ द्वीपमें ५ भरत ५ एरवत ५ म हाविदेह १५ कर्मभूमीमें विचरता साश्वता २० विहरमानको मेरा नमस्कार हो ।
॥आबूजी तीर्थ का स्तवन ॥ जात्रीड़ाभाई आबूजीनी जात्रा करज्यो, जात्रा भणी ऊमहेन्यो,तुम्हे नरभव लाहो लीज्यो रे॥ जात्रो० ॥ पंच तीरथी मांहे छाजे, आबू मारूडै देस विराजे रे॥ जा स्वरगथी वादे लागो, उंचो अंबरियै जइ लागो रे ॥ जा० ॥ १॥ एतो देवानो वास कहावै, निरखंता त्रिपति न थावे रे
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