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अभय रत्नसार। ३७५ विराजै जेहने ठाण ॥ ५ ॥ मेरु विचै कर पूरब पश्चिम दोय विभाग, सोले २ विजय तिहां विचरै श्रीवीतराग ॥ सासते चोथे आरे तारै श्रीअरिहंत, एहवे महाविदेह करमभूमि त्रीजी तंत ॥ ६॥ पूरव विदेह विजय पुष्कलावती आठमी ठांम, पंडरीकणी नगरी तिहां श्रीसोमंधरस्वामि॥ वप्रविजय पचवीसमी विजयापुरनो नाम, पच्छिम विदेह बीजो युगमंधिर कीजै प्रणाम ॥ ७॥तिमहिज नवमी वच्छविजय वलि पूरव विदेह, नयर सुसीमा त्रीजो बाहु नमं धरि नेह ॥ नलिनावर्त चोवोसमी पच्छिम विदेह वखाण, वीतशोका नगरी तिहां चोथो सुबाहु सुजाण ॥८॥ ए च्यारेइ जिणवर जंबूद्वीप मझार, महाविदेह सुदरसण मेरुतणे परकार ॥ एहवो जंबूद्वीप महा गढ जेम गिरिंद, खाई रूपै दोय लख जोयण लवण समंद ॥६॥
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