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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७४ स्तवन- संग्रह | द्वीप में विचरै जयवंता जगदीस ॥ केवलग्यानने धारै तारै कर उपगार, किरण २ ठामे कुरण २ जिन कहस्यं सुविचार ॥ १ ॥ पैंतालीस लक्ष योजन मानुषक्षेत्र प्रमाण, वलयाकारे आधे पुष्कर सीमा जाण ॥ दोय समुद्र सोह द्वीप ढाई सार, ति में पनरै करमाभूमीनो कहूं अधि कार ॥ २ ॥ पहिलो जंबूद्वीप समै विच थाल आकार, लांबी पिहुलो इक लख जोयणनें विसतार ॥ मोटो तेहने मध्य सुदरसन नांमें मेर, तिथी दिसि विदसानी गिणती च्यारे फेर ॥३ मेरुथकी दक्ष दिसि एह भरत सुभ क्षेत्र, पांचसे छव्वीस जोयण छ कला तेहनो क्षेत्र ॥ उत्तरखंडमें एहवो एखत क्षेत्र कहाय ॥ इण चिहु करमांमूमी छए आरा फिरता जाय ॥ ४ ॥ तेत्रीस सहस छसे चोरासी जोयण जाण, च्यार कला ए महाविदेह विखंभ वखाण ॥ बावीससै तेरे जोयग एक विजय पहुलाण, एहवी बत्तीस विजय For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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