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अभय रत्नसार। ३७३ डारे ॥ दोय २ संख्या जगदीसै कह्या नही ए कडा रे ॥ नं० ॥ १० ॥ जोयण सहस मांन दस ऊंचा, दस २ सहस विस्तारारे ॥ झल्लरि सम संठाण जगत गुरु, निश्चय ए निरधाख्या रे॥नं० ॥ ११ ॥ तेह ऊपर प्रासाद सतोरण, अंजनगिरि परमाणे रे॥ जिनपडिमानी संख्या तेहिज, श्रीजिनराज वखाणे रे ॥ नं० १२॥ इम प्रासाद प्रभूना बावन, नंदीसर वर दीपे रे॥ द्रव्य भाव विधि पूजा करतां, मोह महा भड़ जापै रे॥ नं० ॥ १३॥ प्रवचन सार उद्धार प्रकरणे, जीवाभिगमें जाणो रे ॥ इम अधिकार छै नथ अनेकै, इहां संका मत आणो रे ॥ नं० ॥ १४॥ जिम सुरपति विरचै तिहां पूजा, ते अनुभव इहाल्यावोरे ॥ ध्यावो जिम पावो परमातम, जैनचंद्र गुण गावो रे॥नं० ॥ १५ ॥ इति नंदीश्वर स्तवनम् ॥
॥ अढाइ द्वीपै वीस विहरमाण-स्तवन ॥ ॥ वंदु मनसुध विहरमाण जिणेसर वीस,
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