________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३७२
स्तवन- संग्रह |
, उवरी सहस कर विसाला रे ॥ नं० ॥ ३ ॥ ॥ ते ऊपर प्रासाद प्रभूना, अति उत्तंग उदारा रे ॥ साधू जंघा विद्याचारण, वांदे विविध प्रकारा रे ॥ नं० ॥ ४ ॥ चैत्यै ए इकसो चोवीस, बिंब संख्या सब दाखी रे || ध्यावो सेवो भविजन भगते, सुध ओ गम कर साखी रे ॥ नं० । ५ ॥ उंचपणै सहु जोयण बहुत्तर, सो जोया आयामा रे || पिहुल पणे पचासे जोयणना, प्रभू प्रासाद सुठामा रे ॥ नं० ॥६॥ धनुष पांच आयत प्रभुनी, विविध रतनमई काया रे || जिन कल्याणक उच्छव कर वा, सुरपति भक्त आया रे ॥ नं० ॥ ७ ॥ अंजन अंजनगिरि चहुं उवरै, चोमुख च्यार विसाला रे वाव २ विच इकर पर्वत, राजत रंग रसाला रे ॥ नं० ॥ ८ ॥ चोसठ सहस जायण उत्तंगै, दस सहस सत पिहुला रे ॥ चिह्न दिसि सोल सहस दधिमुखगिरि, तिहां प्रासाद सुविमला रे ॥ नं० ।। ६ वा २ नें अंतर विदसें, रतिकर परवत रू
For Private And Personal Use Only