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अभय रत्नसार।
॥ २८ ॥ इम श्रीवीर जिनेसर स्वांमो, जसु आगम वचने विधि पांमी ॥ जोतकल्प ठाणांगे आ दि, वली परंपर गुरु सुप्रसाद ॥ २६ ॥
॥ कलश ॥ ॥ इम जेह धरमी चित्त विरमी, पाप सव आलोयनें ॥ ए कांत पूछ गुरु वतावै, शक्ति वय तसु जोयनें ॥ विध एह करसी तेह तिरसी, धरमवंततणे धुरै॥ ए तवन श्रीधमसिंह कीधो, चौपने फल वधी पुरै ॥ ३०॥
॥ नंदीश्वर द्वीपका स्तवन ॥ नंदीसर वावन जिनालय, शास्वता चोमुख सोहेरे ॥ ऋषभानन चंदानन वारिषेण, वर्द्धमांन मनमोहे रे ।। नं० ॥ १॥ आठमो द्वीप नंदीसर अदभुत, वलयाकार विराजैरे ॥ तेहने मध्य चिहुं दिस शाभित, अंजन गिरिवर छाजै रे ॥ नं०॥२॥ जोयण सहस चोरासी ऊंचा, ऊंच पणे अभिरामा रे ॥ मूलै प्रथुल सहस दस जोय
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