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स्तवन- संग्रह |
आलोय धार ॥ मध्ये दस उपवास विचार, उत्कृष्टा गुण लख नवकार ॥ २२ ॥ परिग्रह विर मरण दोष प्रसंग, तीन गुणव्रतमांहे भंग ॥ च्यार शिक्षा व्रतने अतिचारे, आंबिल त्रिण प्रत्येके धारे ॥ २३ ॥ शीलतरणी नववाड़ि कहाय, तिहां जो लागो दोष जाय ॥ त्रियनें फरस हुआ अविवेके, एक आंबिल कीजे प्रत्येके ॥ २४ ॥ साधु अने श्रावक पोसीध, एकेंद्री सच्चित्त संघट्ट े कीध ॥ वीसर भोले सच्चित्त जल पीध, दंड एकासग
बिल दोध ॥ २५ ॥ विण धायां विण लूह्यां पात्र, एकास तिम पुरिमढ्ढ मात्रै ॥ गइ मुहपती बिल सारो, तिम उघै अठम अवधारो ॥ २६ ॥ च्यार आगार छींड़ो राखै, व्रत पञ्च्चखांण करें पट साखै ॥ दोषे मिच्छामिदुक्कड़ दाखै, प्रालोयण लेतां अभिलाखै ॥ २७ ॥ आलोयणनो अति विस्तार, पूरोहिता नावे पार ॥ तोपिण संक्षेप तंत सार ॥ निरमल मन करतां विस्तार
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