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अभय रत्नसार । ३६१ ए॥२०॥ रूप जिसी सुरसंदरीए, लक्षण लावण्य लीला भरी ए॥ जंगम सोहग देहरी ए, एसी चौसठ सहस अतऊरी ए॥२१॥ अवरज ऋद्धि प्रकार ए, मणि कंचण रयण भंडार ए॥ ते कहिवा कुण जांण ए, वपुवपुरे पुण्य प्रमाण ए ॥ २२ ॥ इम चकीसर पंचमो ए, चोथो दूसम सूसम समो ए ॥ वरस सहस पचवीस ए, सब पूरी मनह जगीस ए ॥२३॥ इण पइ बिहु तीर्थकराए, चिर पालिय राज विविह पराए ॥ जाणी अवसर ए सार ए, बिहु लोधो संजम भार ए ॥ २४ ॥ बिहुखम दम धीरज धरी ए, बिहु मोह मयण मद परिहरी ए॥ विहुजिन झाण समाण ए, बिह पांम्या केवलनाण ए ॥ २५ ॥ बिहु देवहि काडहिमहि ए, बिहु चौतीस अतिसय सहि ए ॥ समवसरण बिहु ठाण ए, बिहु योजनबाण वखाण ए ॥ २६ ॥ नाचे रणकत नेऊरी ए, बिहु आगलि इन्द्र अंतेउरी ए॥
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