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अभय रत्नसार।
३५६ मलपति चालै गैल ए, जाणे नयण अमीरस रेल ए॥७॥ अवर न समो संसार ए, बलि ज्ञान विवेक विचार ए ॥ गुण देखो गज गह गह्यो ए, लंछन मिसि पग लागी रह्यो ए॥८॥ जोवन वय जब आवियो ए, तब वर रमणी परणावियो ए ॥ पीय साधै सब काज ए, प्रभु पालै पुहवी राज ए ॥ ६ ॥ हिव हथणापुर ठाम ए, विश्वसेन नरेश्वर नाम ए, राणी अचिरा देव ए, मनहर सुख माणे वेव ए ॥ १०॥ चवदह सुपर्ने परवस्यो ए, अचिरा उयरे सुत अवतस्यो ए॥ मानव देव वखाणियो ए, चक्कीसर जिणवर जांणियो ए॥११॥ देस नयर हुय संत ए, तिण नाम दियो श्रीशांत ए॥ जिन गुण कुल जाणै कही ए, त्रिभुवणे तसु उपम नहो ए ॥ १२॥ नयण सलूणो हिरण लोए, वन सिंहे बीहै एकलो ए॥ नयण समाधि निरोध ए, इण नयणे नारि विरोध ए ॥१३॥ गीतहि राग सु रंग ए, पिण पभणे लोक
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