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स्तवन-संग्रह।
॥अजित शांतिजिन-स्तवन ॥ मंगल कमला कंद ए, सुख सागर पूनम चंद ए॥ जगगुरु अजित जिणंद ए, शांतीसर नयणानंद ए ॥ १॥ बिहु जिनवर प्रणमेव ए, बिहुँ गुण गाइस संखेव ए ॥ पुण्यभंडार भरेसु ए, मानव भव सफल करेसु ए ॥ २॥ कोडहि लाख पचास ए, सागर जिनशासन भास ए, रिसह जिनेसर वंस ए, उवझाय सरोवर हंस ए ॥३॥ इण अवसर तिहां राजियो ए, राजा जितशत्रु तिहां गाजियो ए॥ विजया तसु घरनार ए, बिहु रमयति पासा सार ए॥ ४ ॥ कूखहि जिन अवतार ए, तिण राय मनाव्यो हार ए ॥ उयर वस्यो दस मास ए, प्रभू पूरो जननी आस ए॥ ५ ॥ बिहूजण मन अंणंदिया ए, सुत नाम अजिय जिण तो दियो ए॥ तिहुअण सयल उच्छाह ए, क्रम २ बाधे जगनाह ए॥६॥ हंस धवल सारिस तणी ए, गति सुललित निज गति निरजणी ए॥
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