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अभय रत्नसार ।
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हती ॥ ८ ॥ नवमें पूरण कुंभ, भरियो निरमल अंभ ॥ देखि सरोवर दसमें, मनह थयो अति विसमें ॥ ६ ॥ समुद्र इग्यारमें ठांमें, खीरजलधि इ नामें ॥ बारम देव विमान, वाजित्र धन गीत गान ॥ १० ॥ तेरम रतननी रासि, दह दिसी ज्योति प्रकासो ॥ सुपन चवदमें ए दोठो, पाति क धूमनीठो ॥ ११ ॥ सुपन का सुविचार, हरख्यो भूप ऊदार ॥ पुत्ररतन होस्यै ताहरै, थास्यै उदय हमारे ॥ ११ ॥
॥ दूहा ॥
चवद सुपन श्रवणे सुखो, हरख कियो सुविचार | सुंदर सुत तुमें जनमस्यो, कुलदीपक आधार ॥ १३ ॥ वामा प्रीतम वचन सुरण, प्रवी मंदिर झत्ति | देव सुगुरु कोरति करै, जनम कियो सुकयत्थ ॥ १४ ॥ इण अनुक्रम ऊगो दिवस, कीधा सुपन विचार ॥ ते घर पहुता आपणै, दीघां दान अपार ॥ १५ ॥
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