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स्तवन-संग्रह।
॥ ढाल ३ ॥ हिव जनम्या जगगुरु जगत्र थयो जयकार, खिण इक नार कियें पायो सुक्ख अपार ॥ दिसिकुमरी मिलकर सूत्रकरम निसि कीध, कर थांनक पोहती वंछित तेहनो सिद्ध ॥१६॥ तिणहीज निसि चौसठ इन्द्र मिली तिहां आवै, लेइ निज भक्त सुरगिरि स्नात्र करावे ॥ करी जनम महोच्छव जननी पास ठाव, तिहांथी सुर सब मिल द्वीप नंदीश्वर जावै ॥१७॥ इम रयण विहाणी ऊगो दिवस ऊदार, घर २ गाई जैकीजै मंगलाचार ॥ इग्यारमें दिवसे मिली सहू परिवार, तसु नाम दियोश्रो उत्तम पासकुमार॥१८॥ प्रभु वाधै दिन २ कला करी जिम चंद, बिहु ज्ञान विराजित रूप जिसा देविंद ॥ गुणकला विचक्षण विद्यातणो निधांन, जोवनवय आयो परणायो राजान ॥ १६ ॥
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