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अभय रत्नसार । ३५३ वीनती कीजै, केसर चंदन चरचीज, दिन धन २ तेह गिणाजै ॥ कृ०॥ ६ ॥ प्रभु दरस सरस लहि तोरो, अति हरषित हुवो चित मोरो, जिम दीठा चंद चकोरो ॥ कृ०॥७॥ परतिख प्रभु पंचम आर, वीस माहा भय संकट वारै, सहु सेवक काज सुधारै ॥ कू० ॥ ८॥ सेवो स्वामि सदा सुखदाई, कमला न रहै घर कांई, वाधै संपत शाभ सवाई॥ कृ०॥६॥ नाभिराय कुलं वर चन्दा, भव जन मन नयण आनंदा, उलग सुर असुर सुरिंदा ॥ कृ० ॥ १० ॥ जयकारीऋषभ जिनंदा, प्रह सम धर परम आणंदा, बंदे श्रीजिन भक्ति सूरिंदा ॥ कु० ॥ ११ ॥ ॥ पार्श्वनाथजी का बड़ा स्तवन ॥
॥ ढाल १ ॥ पास जिनेसर जग तिलो ए, गवडीपुर मंड ण गुण निलो ए, तवन करिस प्रभु ताहरो ए, मन वंछित पूरो माहरो ए ॥ १॥ नयरी नाम
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