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स्तवन- संग्रह |
सुणी सह अधिकार ए, संस्तव्यो पासजिनंद पाठक धर्म वर्द्धन धार ए ॥ २७ ॥ इति समवसरण विचार - गर्भित स्तवनं सम्पूर्णम् ॥
॥ श्री ऋषभदेवजीका स्तवन ॥ || ढाल || पटोरी पायै पधारो || ए देशी ॥ ॥ सुगा २ सैजगिर स्वामी, जग जीवण अंतरजामी, हूं तो अरज करू सिरनांमी ॥ कृसानिध विनतो अवधारो, भवसागर पार उतारो, निज सेवक वांन वधारो ॥ कृ० ॥ १ ॥ प्रभू मूरति मोहनगारी, निरख्यां हरषे नर नारी, जाउ वारी हुं बार हजारी ॥ ० ॥ २ ॥ हिव किसिय वि मासरण कीजै, मुझ ऊपर महिर धरीजै, दिल रंजन दरसण दीजै ॥ कृ० ॥ ३ ॥ आज सयल मनोरथ फलिया, भव २ ना पातिक टलिया, प्रभु जी मुझसे मुख मिलिया ॥ कृ० ॥ ४ ॥ समस्या संकट टल जावै, नव नव नित मंगल थावै. मुतम पुन्य भरावै ॥ कृ० ॥ ५ ॥ करजोडी
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