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अभय रत्नसार ।
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चौजाणियै विदिसि चौ कूण दोय २ वखौरिखये ॥ आठ जिहां वावि जल अमृत जेम ए, स्नान पाने वपु निरमल हेम ए ॥ २३ ॥ जय विजय जयंत अपराजिया, मध्य कंचण गर्दै प्रोल वसंतिया || तुंबरु पुरुष खडग अचिमाल ए, रजतगढ प्रौलना एह रखवाल ए ॥ २४ ॥ पहिलो त्रिगडो नहुयपुर जिण ग्राम ए, देव महर्द्धिक रचै तिरा ठांम ए ॥ करण वारवार नही कारण कोय ए, आठ प्रातीहारज ते सही होय ए ॥ २५ जिरण समवसरणनी ऋद्धि दीठी जिये, तेह धन धन्न अवतार पायो तिये || पास अरदास सुणी वंचित पूज्यो, हि मुझ ताहरो शुद्ध दरसन हुज्या ॥ २६ ॥
॥ कलश ॥
इम समवसरण ऋद्धि वर सहू जिनवर सारखी ॥ सरदहे ते लहे शुद्ध समकित परम जिनधर्म पारखो || प्रकरण सिद्धांत गुरु परंपरा
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