________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३५०
स्तवन- संग्रह |
परषद भणी ॥ १८ ॥ प्रदक्षिणारूपथी अगनिकुण करी. गणधर साधची तिम वेमाणिय सुरी ज्योतषी भुवानी विंतरी स्त्रीप, नैऋतकूण जिनवांण उभी सुणे | त्रिहंतरणा पति वायवकुंण में जाण ए, सुर वैमारणीय नर नारि ईसाग ए । बारह परखदा मद मच्छर छोड ए, भूख त्रिस विसरै सु कर जोड ए ॥ ॥ १६ ॥ पूठ भामंडल तेज प्रकास ए जोयण सहस ध्वज उं च आकास ए, झलहलै तेज ध्रुव चक्र गगने सही, महक सहु वारणे धूपधारणा सही ॥ २० ॥ वावहिल सहु धरिय पहिले गढे, होय पगचार नर नार उंचा चढे ॥ जिनतरणी वाणि सुणि जीव तिरयंच ए, वैर तजि बीय गढ रहे सुख संच ए ॥ २१ ॥ पुन्यवंत पुरुष ते परषद बारमें सुनें जिनवाणि धन गणिय अवतार में | चौविह देव जिनदेव सेवा रचें, मणिमयी मांहिलो प्रौल माहे बसै ॥ २२ चिहुँ दिसि वाटली वावि
For Private And Personal Use Only