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अभय रत्नसार ।
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स्थित वसै जी, नगर आराम आवास ॥ श्र० ॥ १३ ॥ तोरण चिह्न २ दिस तिहां जी, नीलमणि मोर निरमाण || दुसय धणु मध्य मणि पीठका जी, उच्च जिण देह परिमाण ॥ ० ॥ १४॥ च्यार आसण तिहां चिहुं दिसे जी, मोतीयें काक- कमाल ॥ सम विच कृण ईसारण में जी, देवच्छंदो सुविशाल ॥ ० ॥ १५ ॥ देवदुदुभि नाद उपदि जी, जिन गुण गावसी तेह || ब्रह्म जिम आइ सिर ऊपरे जी, गाजसी तेह गुण गेह ॥ १६ ॥ ० ॥
|| ढाल २ || सफल संसारनी ए देशी || पुत्र दिसि असणे आय वेसे पहू, सुर कृत चौमुख रूप देखै सह ॥ दीप असोक तस वारगुण देहथी, देखि हरखे सहू मोर जिम मेहथी ॥ १७ ॥ मोतियां जालि त्रिण छत्र सुविशाल ए, रूप चिहुं २ दिसैँ चामर ढाल ए ॥ योजनगावांग श्रीजिनतणां, भगवंत उपदिसै बार
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