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अभय रत्नसार। ३४३ भुजपरी साप भु चारी लेय, तिविहा गाय साप तिम नकुल अनुक्रम देय ॥ १२॥ खेचर चरम रोम पंखी चमचेड़ कपोत, मनुजलोकथी बाहिर समुग विगय पंख होत ॥ सरबे जल थल खेचर समुब्छम गम्भय दोय, कम्म अकम्म भूमि अं तर दीवा मण जोय ॥ १३ ॥ असुरादिक दस होय वाण व्यंतरिया अद्ध, जोइस पंच वेमाणिय दुविहासु तें दिध ॥ पनरे भेदे सिद्ध कह्या ए जीव प्रकार, तनु मानादिक हिव एहनो कहिसुं अधिकार ॥ १४ ॥ देह आउखो एक सरीरे थितनो मांन, प्रांण जेहने जेता तिम वलि योन प्र माण अंगुल भाग असंख सह एगिंदी काय, जोयण सहस साधिक पत्तय वणस्सई काय १५ बो ति चउरेंद्री अनुक्रम उकिठदेह ऊंचास, बारै जोयण तीन गाउ इग जोयण भास ।। सत्तमना नेरइया धण सय पंच प्रमाण, तेहथी अरध २ ऊणा अनुक्रम रयणाण ॥ १६ ॥ जोयण सहस
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