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स्तवन -संग्रह |
गब्भधर मच्छ उरगनो देह, गाउ धणु पुहत्त भूचारी पंखी जेह खेचर नव घरण उरंग भुयंग जोयण नव होय, नव गाऊ परिमाण समुच्छम चौपय सोय ॥ १७ ॥ खड़ गाउ ऊंचास चउप्प य गब्भय मांण, तीन कोस उक्कोस मनुजनो काय प्रमांण ॥ भुवन व्यंतर जोइस बेमाणिय ईसागंत, सात हाथ उक्कोसे ऊंचपणे तण हुंत ॥ १८ ॥ सनतकुमार माहेंद्र षड़ ब्रह्म लांतक पांच शुक्र सहस्रारे उक्कोस च्यार कर वांच ॥ आणत प्राणत आरत अच्युत हाथें तीन, नवग्रैवेयक दोय पंचाण तरइग लीन ॥ १६ ॥ बावीस सात तीन दस वरस सहस्सें आय भू आऊबाऊ व
ती दिन ऊकाय ॥ बार वरस गुणचास दिवस तिम वलि छम्मास, अनुक्रम बेइद्री तेइ द्री चौरिंद्री रास ॥ २० ॥ सुर नागर तेतीस अयर उक्कोसें चाय, चोपय तिरिय मनुजनों तीन पल्योपम थाय ॥ जलचर उरपर भुजपर उक्कासे
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