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स्तवन-संग्रह।
अंतमु हुत्तै आय ॥ ७॥ सूखमथी ते नियमा दिठी निजर न होय, लोका लोक प्रकास थकी वलि अलप न कोय ॥ कवडी संख गंडोला लहिगा लटनी जात, चंदन काअलसी मेहर जोका विक्षात ॥ ८॥ माय बाहाक्रम पौरादिक बेइन्द्री होय, गोमो मांकिण जूश्रा कीडा कीडी दोय ॥ दीपक ईली घीवेली गोगीडा जात, चरम जूका गादहिया गोवर कृम उतपात ॥६॥ धनकीडा जिम चोरकोड़ा गोवालो तेह, ईली कंथुक इन्द्रगोप तेइंद्री एह ॥ वीछू ढंकरण भमरा भमरी इन्द्री च्यार, तीड़ा माखी डांस मच्छर कंसारी धार ॥ १०॥ कवडडोला मांकड़िय पतंग इत्यादिक भेद, नारक तिरि मणु देव पंचेंद्री च्यार विच्छेद ॥ धम्मा वंसा सेला अंज रिठा क्षात, मघा माघवई नारग ए नामे सात ॥ ११॥ जल चारो थलचारी नभचारी तिरयंच, मच्छ कच्छ सुसमार मगर गाहा जल अंच ॥ चौपय उरपरी
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