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अभय रत्नसार। ३४१ विछेद ॥भूमि आकास उस हिम करग आऊना भेद, हरित घास ऊपर जे जलकण धू अर तेम ॥ होय घणो दधि अप्पकाय पिण पाहण जेम ॥३॥ अंगारा झाला भोभर तिम उलकापात, असणि कणग विद्यु तादिक अगनि जीव विक्षात उभामग उक्वलिका मंडल वलि मुख वात, सुद्ध गंज तिम घण तण वाऊ भेदें क्षात ॥४॥ साधारण पत्तेय वरणस्सई जीव दु भेय, एग सरीर अनंत जीव साधारण नेय ॥ कंदा अंकुर कुंपल फूलण वलि जंबाल, भूफोड़ा अद्दत्तिय सरवे जे फल वाल ॥ ५ ॥ गाजर मोथ वाथलो थेग पालंको साग, गुपत सिरा सांधा गांछो भांजे सम भाग॥ काटी डाल भूमिमें रोप्यां पल्लव थाय, जाल पान इत्यादिक साधारण वणकाय ॥ ६॥ एग सरी रे. एक जीव ज ते प्रत्येक, फल छाल फल मूल काठ बीजै जिय एक ॥ वण पत्तेय विना जे पांचे पुढवीकाय, सयल लोगमें व्यापक
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