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अभय रत्नसार । ३३३ ए अंक गिणाय ॥ माघ किसन ससि वार मेरू तिथ परन कीध, च्यार कथा तजि तत्वकथा भज नर फल लीध ॥३३॥ इति नवतत्व भाषा-गर्भित स्तवनम् ॥
॥ दंडक भाषा-गर्भित स्तवन । दोहा ॥ ऋषभादिक चोवीस नमि, तेहनो सूत्र विचार ॥ दंडक रचनायें तवं, संखेपे निरधार ॥ १॥ नरक सात दंडक प्रथम, असुरा नाग सुवन्न ॥ विज्जु अगन दीवो दही, दिसि पवणे थणियन्न ॥ २॥ पुढवी आउ तेउ वलि, वाउ वणस्सइ काय ॥ बी ति चौरिंदी गब्भधर, तिरि नर तिहां मिलाय ॥ ३॥ व्यंतर जोइस वेमाणि या, ए दंडक चोवीस । एहना द्वार कहू हिव, गणनाये ते वीस ॥ ४॥
- ॥ ढाल ॥ १ ॥ वीर निणेसरनी ।। ए देशी ॥
सरीर उगाहण संघयणेसणा संठांण, कोहा ई लेसिदिय दो समुग्धाय प्रमाण ॥ दिट्ठी दसण
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