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स्तवन- संग्रह |
गुणा सुप्रसिद्ध ॥ २८ ॥ जे जाणे जीवादिक नव तत्त तस सम्मत्तं, अरणजागंताने हुय जे सरधा नेरत ॥ सरव जिनेसर मुखथी भाष्या वयण ज हत्थ, ए बुद्धी जेहने मन संमत निञ्चल तत्थ ॥ २६ ॥ अंतरमहुरत एग मात्र फरस्यो सम्मत, अर्द्ध पुग्गल परियह नियम संसार निमित्त ॥ उसप्पणिय अते इग पुग्गल परियह, अनंत अतीत अनागत तद्गुण वयण प्रगट्ट ॥ ३० ॥ इम नव तत्त भेद पड़िभेदै विवरण कींध, श्रावक आग्रह कीन सहाय पूरण रस पीघ ॥ कोटिक गण सुभ सदन प्रकास नदी उपमांन, श्रीजिनलाभचंद कुल पूनमचंद समान ॥ ३१ ॥ अज्ञानादक करिवर सिंहे वयरी साख, रत्नराजमुनि ते वड़ साखानी पड़िसाख ॥ ग्यानसार ते पड़िसाखानी सूखम डाल, एनव पद नव रयणे बिनाणें गंथी माल ॥ ३२ ॥ संवच्छर निश्चय नय विगई प्रवचन माय, परम सिद्धि पद वाम गतें
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