________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अभय रत्नसार।
भाग सातमो भाव आठ तिम अलप बहुत्त ।। ए नव भेदें भावन कस्युं नवमो तत्त ॥ २४ ॥ मोक्ष एक पदवी छै जे पदे अविनाभाव, व्योम कुसुम तिम ससिक शृंग जिम नहीय अभाव ॥ एहवो जे पद मोक्ष तेहनो मग्गण द्वार, विवरण कर वरणवस्युं सुणज्यो सुहुम विचार ॥ २५ ॥ संमत्तै क्षायक सन्नी असन्नी येसन्नी, अणहारी आहारी अणहारी ऊपन्न द्रव्य प्रमाणे सिद्ध जीव ॥ द्रव्य होय अनंत, लोग असंखम भाग एग सिद्ध होय अणंत ॥ २६ ॥ फरसन क्षेत्रथी अधिक काल इग सिद्ध प्रतीत, सादि अनंती थित जिन आगमथी सुविदीत ॥ प्रतिपातां भावै नहि सिद्धां अंतर जोय, सरव जीवथी भाग अनंतम सह सिद्ध होय ॥ २७ ॥ दंशण नाण जेहने बे ते क्षायक भाव, जीवत जेहने वलि परणामकं भाव समाव ॥ सहुथी थोड़ा वेद नपुसकथी जे सिद्ध, तेहथी थीनर अनुक्रम संख
For Private And Personal Use Only