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अभय रत्नसार। ३२६ सहज इ धम्म भावण चारित्त, पणतिग बावीस दस बारै पण संवर तत्त ॥ १५ ॥ इरिया भाषा एषणा सुमतीना भेद होय, आदान भंड उच्चार निस्केवण पांचे ज़ोय ॥ मनगुत्ती वयगुत्ती कायगुत्तो त्रिण जांण, हिव आगे बावोस परिसह कहूं हित आण ॥ १६ ॥ भूख पिपासा सीत उसन डांसा निरवत्थ, अरति जोषा चरिआ नैषिद्या सिज्जा सत्त ॥ अकोसवहजायण अलाभ रोग त्रिण भास, मल सकार यन्ना अन्नाण समत्त समास ॥ १७ ॥ खंति मद्दव अज्झव मुत्ती तव संजम सम्म, सत्यं शौच अकिंचन बंभचेरज इ धम्म ॥ पढम अनित्य असरण संसार एग अनत्त, अशुचि आश्रव संवर निझर भवि भावो नित्त ॥ १८ ॥ लोक सुभाव बोध दुरलभ इग्यारम गाम, धरम साधक अरिहंत ए बारै भावना भाव ॥ सापायक छेदोपस्थापन बीजो सोय, परिहार विशुद्ध सूखम संपराय चउत्थो जोय १६
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