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३२८ स्तवन-संग्रह। नाणंतराय दस कनव बीजा नीचअसाय, मित्थ थावर दशनादग त्रिक पचवीस कसाय ॥ तिरियंच दुग एकेंद्री बि ति चोरिंद्री तेय, कूखगई उपधा अपसत्तथ वण्ण चौ भेयं ॥११॥ पढम संघयण विना संघेणा तेम संठाण, एम बयासी प्रकृति पाप ततनी ए जाण ॥ थावर सुहम अपज्ज साहा रण अथिरै गेय, असुभ दुभग दू सरणा इज्ज अजस दस लेय ॥ १२॥ पण चौ पण तिय इंदी कसाय अव्वय तिम जोग बायालीस सेष पच्चीस क्रिया संजोग ॥ काइय अहिगरणीया पावसिया परिताप, प्राणातिपात आरंभकी परिगहियानो तोप ॥ १३॥ माया प्रत्यय मिच्छादेसण वत्ती तेम, अपञ्चखाणकी दिठ पुठ पाडुच्चिय जेम ॥ सामंतो पनवणिय ने सस्थि सहत्थै जेह, आज्ञापनको वेयारण अणभोगा तेह ॥ १४ ॥ अणव कंख पञ्चयना उवउगी समुदाय, प्रेम द्वष इरियावही किरिया ए कहिवाय ॥ सुसति गुपति परि
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