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अभय रत्नसार।
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देस पएस परमाणू चवद अजीव, धम्माधम्म पु ग्गल नभ काल ए पांच न जीव ॥६॥ चलण सहाई धम्में थिर संठाण अधम्म, अवगाह पूरण गलणे नभ पुग्गल धम्म ॥ समयावलिय महत्त दोह पख मास में साल पल्योपम सागर उसप्पणी सप्पणी काल ॥ ७॥ षड इग दो सग सग सग षड़ इग अंक गिणाय, एग मुहुत्तें आवलि संख्या सूत्र कहाय ॥ तीन सात वलि सात तीन ऊसासें माण, केवलनाणो भणियो एह महत्त प्रमाण ॥ ८ ॥ साता उच्च गोय मण सुर हुग पंचिंदि जाय, पांच शरीर आदि प्रति सरीर उवंग कहाय ॥ आदि संघेण संठाण चौवणे अगुरु लहु होय, परघ उसास तेम वलिआ तप ने उज्जोय ॥६॥ सुभखगइ निम्माणत सादि दशु नीमाल, सुर नर तिरि आऊ तित्थंकर पुण्य वयाल ॥ त स बादर पज्जत पतेय थिरं सुभ सोय ॥ सुभग सुसर आइज जसैं स दसको होय ॥१०॥
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