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३२२ स्तवन-संग्रह। गुणयान, इक २ अंतरमहुरत मांन ॥पंच प्रमाद वसै जिण ठाम, तेण प्रमत्त छठो गुणधांम ॥२०॥ थिवरकलप जिनकलप आचार, साधै षट् आवश्यक सार ॥ उद्यत चोथा च्यार कषाय, तेण प्रमत्त गुणठांण कहाय ॥ २१॥ रूधो राखै चित्त समाध, धरम ध्यान एकांत आराधै ॥ जिहां प्रमाद क्रिया विध नासै, अपरमत्त सत्तम गुण भासै ॥ २२॥ ॥ ढाल ॥ ५ नदी यमुनाके तीर उडै दोय पंख्यिा ॥ए देशी ।।
पहिले अंसे अष्टम गणठाणातणे, आरंभे दोय श्रेण संख्येपै ते गणे॥ उपशम श्रेणि चढे जे नर हुवै उपशमी, क्षपकश्रेणि क्षायक प्रकृति दस क्षय गमी ॥ २३ ॥ तिहां चढ़ता परिणाम अपूरख गुण लहै, अष्टम नाम अपूरव करण तिणें कहै । सुकल ध्यांननो पहिलो पायो आदरै, निर मल मन परिणाम अडिम ध्याने धरै ॥ २४ ॥ हिव अनिवृत्त करण नवमो गुण जांणियै, जिहां
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