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अभय रत्नसार ।
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अरधतां, उत्कृष्टा भवमें रहै ए ॥ केइएक भेदी गंठि, अंतरमहुरते चढ़ते गुण शिवपद लहै ए ॥ १४ ॥ च्यार कपाय प्रथम्म, त्रिण वलि माहनी, मिथ्या मिश्र सम्यक्तनी ए ॥ साते प्रकृति जास, परही उपशमें, ते उपशम समकित धरणी ए ॥ १५॥ जिस साते तय कीध, ते नर नायकी, तिपहिज भव शिव अनुसरे ए ॥ आगलि बांध्यो आऊ, ari fati थकी, तीजै चोथे भव तिरै ए ॥१६॥
|| ढाल || ४ || इस पुर कंबल कोइ न लेसी ॥ ए देशी ॥ पंचम देसविरति गणठाण, प्रगटै चोकड़ी प्रत्याख्यान ॥ जेण तजेवा वीस अभक्त, पांम्यो श्रावको प्रत्यक्ष ॥ १७ ॥ गुण इकवीस तिके पिधारे, साचा वारै व्रत संभारे ॥ पूजादिक पट कारज सार्धं, इग्यारे प्रतिमा आराधे ॥ १८ ॥ आर्त्त रौद्र ध्यान है मंद, आयो मध्य धरम आणंद | आठ वरस ऊणी पुव्वकोड़, पंचम गुणठाणे थित जोड़ ॥ १६ ॥ हिव आगे साते
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