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स्तवन-संग्रह। विच एक समयादि षट आवली, सहीय सासादने थित इसी सांभली ॥ हिव इहां मिश्र गुणठाण तीजो कहै, जेह उत्कृष्ट अंतरमहुरत लहै ॥६॥
॥ ढाल ॥ ३ चे कर जोडी तांम ॥ ए देशी ॥
॥ पहिला च्यार काय, सम कर समकिती, कैती सादि मिथ्यामती ए । ए बेहिज लहे मिश्र, सत्य असत्य जिहां, सर दहणा बेऊ छती ए॥ १०॥ मिश्र गुणालय मांहि, मरण लहै नही,
आउ बंधनपड़े नवो ए॥कै तो लहै मिथ्यातकै समकित लहै, मति रसखी गति परभव ए ॥११॥ च्यार अप्रत्याख्यान, उदय करी लहै, मति विन किहां समकितपणो ए ॥ ले अविरत गुणठाण, तेत्रीस सागर, साधिक थिति एहनी भणी ए॥ १२ ॥ दया उपशम संवेग, निरवेद आसता, समकित गुण पांचै धरै ए॥ सहु जिन वचन प्रमाण, जिन शासन तणी, अधिक २ उन्नत करै ए ॥ १३ ॥ कोईक समकित पाय, पुदगल
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