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स्तवन- संग्रह |
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॥ कलश ॥
इम धर्म नायक मुगति दायक, वीर जिनवर संधुरयो ॥ सय सतर संवत वह्नि लोचन, वर्ष हर्ष धरी घणो ॥ श्रीविजय देव सुरिंद पटधर, विजयप्रभ मुणिंद ए ॥ कीर्तिविजय वाचक सीस इा पर, विनय कहे आनंद ए ॥ ५८ ॥ || चउदह गुणठारणों का स्तवन ॥
॥ भणपुर श्रीपास जिणंदो || ए देशी ||
सुमति जिणंद सुमति दातार, वंदू मन सुध वारंवार, आणी भाव अपार ॥ चवदै गुण थानक सुविचार, कहिस्युं सूत्र अरथ मन धार, पांमे जिम भव पार ॥ १ ॥ प्रथम मिथ्यात को गुणठाणो, बीजो सास्वादन मन प्रणो, तीजो मिश्र वखाणं ॥ चोथो अविरत नांम कहाणो, देशविरति पंचम परमांगो, छट्टो प्रमत्त पिछाण ॥ २ ॥ अप्रमत्त सत्तम सलहीजे, अष्टम अपुरव करण कहीजै, अनित्ति नांम नवम्म ॥ सुखम
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