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स्तवन- संग्रह |
कोलियो ए, मुखमां क्षेपे जतन्न तो ॥ ४५ ॥ कम पूत उद्यम पिता ए, उद्यम कोधा कर्म तो ॥ उद्यमथी दूरे टलै ए, जोउ कर्म्मनो मर्म्म तो ॥ ४६ ॥ दृढप्रहार हत्या करी ए, कीधा पाप - रंभ तो ॥ उद्यमथो खट मासमां ए, आप थया अरिहंत तो ॥ ४७ ॥ टीपै २ सरवर भरै ए, कांकरे २ पाल तो ॥ गिर जेहवा गढ़ नीपजे ए. उद्यम सकल निहाल तो ॥ ४८ ॥ उद्यमथी जलबिंदुउ ए, करे पाहाणमां ठाम तो ॥ उद्यमथो विद्या भणे ए, उद्यम जोडे दांम तो ॥ ४६ ॥
॥ ढाल ।। ६ ।। ए छिडी किहां राखी || ए देशी ॥ ए पांचेही वाद करंतां, श्रीजिन चरणे आवै ॥ अमिय रसै जिन वयण सुखीनें, आणंद अंग न मावै रे ॥ ५० ॥ प्राणी समकित मति मन आणो ॥ नय एकांत म ताणो रे ॥ प्रा० ॥ ते मिथ्या मति जांगो रे ॥ प्रा० ॥ ए आंकणी ॥ ए पांचे समवाय मिल्यां विन, कोई काज न सी ॥
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