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स्तवन-संग्रह।
॥ ढाल ४ थी ॥ मारुर्ण मनोहरणी ॥ ए देशी ।।
काल स्वभाव नियत मति रूड़ी, करम करे ते थाय ॥ करमें नरय तिरिय नर सुर गति, जीव भवंतरै जाय ॥ ३२ ॥ चैतन चेतज्यो रे, करम न छुटै कोय ॥ ए आंकणी ॥ करमें राम वस्या वन वास, सीता पामी आल ॥ कर्म लंकापति रावण न राज्य थयों विसराल ॥ ३३ ॥ चे॥ कम कोड़ी कमें कुंजर ॥ कमें नर गुणवंत ॥ कमें रोग सोग दुख पीड़ित, जमन जायै विलसंत ॥ ३४॥ चे॥ कर्मे वरस लगे रिसहेसर, उदक न पामे अन्न ॥ कर्मे जिननें जोउ निमार, खीला रोप्या कन्न ॥३५॥ चे॥ कमें एक सखपाले बैसे, सेवक सैव पाय ॥ एक य गय चढ्या चतुरनर, एक आगल ऊजाय ॥ ३६॥ चे ॥ उद्यम मांनी अंधतणी पर, जग हीडै हाहूतो ।। कर्मवली ते लहै सकल फल, सुखभर सेजै सूतो ॥३७॥ चे०॥ अंदर एके कीधो उद्यम ॥ क. रंडीयो करकोले ॥ मांहे घणा दिवसनो भूखो,
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