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३०८.
स्तवन- संग्रह |
लाख सहस प्यार बेसे अधिक ते थाय ॥ अरिहंत प्रमुख छह साखै छगुण भाय ॥ इम लाख अठारह वलि सहस चउवीस ॥ इकसो वीसोत्तर हुइ. संख्या निसदीस ॥६॥
॥ ढाल ४ थी || चोपड़नी ॥ ए देशी ॥ || इस परिमिच्छामि दुक्कडंदेई भविक तस्या भवजल निधिकेई ॥ तरे अछे वलि आगलि तरिसी ॥ निरमल केवल लखमी वरिसी ॥ १० ॥ इरियावही धरम गंगाजल | न्हाण करै आतम करि निरमल ॥ सें मुखभाषै वीर जिणेसर ॥ सू
करि गूथै ते श्रुतधर ॥ ११ ॥ इस पडिकमी मुनिवर इमत्तो ॥ वीरसोस केवल पदपत्तो ॥ त्रिकरण सुध तसु पय प्रणमी जै ॥ मानव जनम सफल इम कीजे ॥ १२ ॥
॥ कलश ॥
॥ इम वीरजिरावर ग्यान दियर सयललोय सुहंकरो ॥ तियलोय सामि सिद्धगामी
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