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अभय रखसार ।
३०७ यांरि लवण समुद्रमांहि बिस्तरी ए ॥ सात २ अं तर दोय पासै दीप छप्पन्न अन्तर धरीए ॥ दोइस भेद दुइ आगला जांणी मणय पज्जत अप ज्जतयाए ॥ एक सौ एक समुर्छिम भेद तीनसै तीन मणआ थयाए ॥ ५॥
|| ढाल ॥ ३ ॥ हिव जनम्या जगगुरु ए ॥ देशी ॥ पणस्य सठिविध जीवसहूंछे एह अभिहय आदिक दस गुणित करीजै तेह ॥ पणसहस छसै वलि त्रीस अधिकते जाणि ॥ ते रागै दोसै दुगुण करी वखाण ॥ ६॥ हुइ सहस इग्यारह दुइसय साठि प्रमाण ॥ ए प्रवचनवाणी जाणी हितउर आण ॥ मनवच काया करि त्रिगुणाकरि त्रिअंक ॥ तेतीस सहस सत सातअसी निःशंक ॥७॥ वलि करण करावण अनुमति त्रिगुण किद्ध ॥ इकलक्ख सहसइग तिसय चालीस प्रसिद्ध ॥ अतीत अनागत वर्तमान वलिकाल जे थइयविराधना तिणि त्रिगुण संभाल ॥ ८॥ तीन
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