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स्तवन- संग्रह |
नें वलि पाणी, वनस्पती प्रत्येक जी ॥ पू० ॥ ६ ॥ पर्याप्ता इण पांचे ठामे, आवि ऊपजै देव जी ॥ इण पांचा माहे पिण आगे अधिकांई कहुं हेव जी ॥ ५० ॥ १० ॥ तीजा सरगथको मांडी सुर, एकेंद्रो नवि थाय जी ॥ ऋठमथी ऊपरला संगला, मांनवमांहे जाय जी ॥ ५० ॥ ११ ॥
|| ढाल || २ || आज निहेजोरे दीसें नाहलो ॥ ए देशी || नरकतणी गति गति इण परै, जीव भ संसार ॥ दोय गति नें दोय आगत आंणिये, वलिय विशेष विचार ॥ न० ॥ १२ ॥ संख्याते आयु परजापता, पंचेंद्री तिरयंच ॥ तिमहीज मनुष्य एहिज बे नरकमें, जायै पाप प्रपंच ॥ न० प्रथम नरक लग जाय असन्नियो, गोह नकुल तिम बीय ॥ गृद्ध प्रमुख पंखी त्रीजी लगे, सींह प्रमुख चोथीय ॥ न० ॥ १४ ॥ पंचमी नरकै सोमा सापणी, छठीं लग स्त्री जाय ॥ सातमियें मारास के माइलो ऊपजै गरभज आय ॥ न०
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