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स्तवन- संग्रह |
हो सम विखमी ठांम ॥ गिरुवा सहजे गुण करे, स्वामी सारो हो मोरा वंछित कांम ॥ वी० ॥१७॥ तुम नांमे सुख संपदा, तुम नांमे हो दुख जाये दूर ॥ तुम नांमे वंछित फलै, तुम नांमे हो मुझ आनंदपूर ॥ वो० ॥ १८ ॥ कलश ॥ इम नगर जेसलमेरु मंडन, तीर्थंकर चोवीसमो ॥ शासनाधोश्वर सिंह लंछन, सेवतां सुरतरु समो ॥ जिनचंद त्रिसलामात नंदन, सकलचंद कला निलो, वाचनाचारज समयसुंदर ॥ संथुण्यो त्रिभुवन मिलो ॥ १६ ॥
॥ चौबीस दंडक का स्तवन ॥
॥ ढाल १ || आदर जीव क्षमा गुण आदर || ए देशी || ॥ पूर मनोरथ पात्र जिनेसर, एह करू अर दास जी ॥ तारण तरण विरुद तुझ सांभलि,
यो हूं घर आस जी पू० ॥ १ ॥ इण संसार समुद्र था, भमियो भवजल मांहिजी ॥ गिल गिचिया जिम आयो गिडतो, साहिब हाथे साहि
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