SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 328
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभय रत्नसार । २६७ वी० ॥ १० ॥ बार वरस वेस्या घरे रह्यो, मूंकी हो संजमनो भार ॥ नंदिषेण पिण ऊधस्यो, सुर पदवी हो दीधी अति सोर ॥ वी० ॥ ११ ॥ पंच . महाव्रत परिहरी, ग्रहवासे हो वस्यो वरस चोवीस ॥ ते पण आद्र कुमारनें, तें ताख्यो हो तोरी एह जगीस ॥ वी० ॥ १२ ॥ राय श्रेणर्क रांणी चेलणा, रूप देखी हो चित चित चूका जेह ॥ समवसरण साधु-साधवी, तें कीधा हो आराधिक तेह ॥ वी० ॥ १३ ॥ विरत नही नही आखडी, नही पोसो हो नही आदर दीख ॥ ते पिण श्रणिकरायनें, तें कीधो हो सामी आप सरीख ॥ वी० ॥ ॥ १४ ॥ इम अनेक तें ऊधस्था, कहु तोरा हो केता अवदात ॥ सार करो हिव माहरी, मनमांहे हो मोरडी वात ॥ वी० ॥ १५॥ सूधो संजम नहि पलै, नहो तेहवो मुझ दरसण ज्ञान ॥ पिण आधार है एतलो, इक तोरो हो धरु निश्चलध्यान वी० ॥ १६ ॥ मेह महितल वरसतो, नवि जोवे ३३ For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy