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अभय रत्नसार। २६ तीर्थकर दोय पदवी लही। वीर वासुदेव अरिहंत भव जूता, देह तिणसाठ पिण जीव गुणसठ थया॥ १५॥ वासुदेव वलीय बलदेव केरा पिता, एकहिज थाय नव एण लेखै छता ॥ तीन चक्रधर तणा मिलिय बारै टल्या, एम वेसठना तात इकावन मिल्या ॥१६॥ तीन चक्रवत्ततणी टाल दीजे इस, गाय सहुनी थई साठ लेखे इस॥ एह नररयणनो व्यांन नित जे धरे, तेह सुरपद लही मोक्ष पदवी वरै ॥ १७ ॥
॥ कलश ॥ इम थुण्या तीर्थंकर चक्रीसर वासुदेव बलदेव ए, प्रतिवासुदेव सुसेव जेहनी करै सुरनर सेव ए ॥त्रेसठ शलाका पुरुष उत्तम जगत जयवंतो सदा, प्रह शमे तेहना चरण पंकज नमे मुनि वसतो मुदा ॥ १८ ॥
॥सिद्धगिरी का स्तवन ॥ श्र विमलाचल सिर तिलो, आदीसर अरी
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