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स्तवन-संग्रह। हंत ॥जुगला धर्म निवारणो, भय भंजण भंगवंत ॥श्री० ॥१॥ मुझ मन ऊलट अति घणो, सो दिन सफल गिणेस ॥ स्वामी श्री रिसहेसरू, जब नयणे निरखेस ॥श्री ॥२॥ जंगम तिरथ विहरता, साधु तणे परिवार ॥ आदि जिनंद समोसरया, पूरब निन्ना' वार ॥ श्री० ॥ ३ ॥ अचिरा विजयानंदने, जगबंधव जगतात ॥ इण गिर चउमासे रह्या थिवर कहे ए वात ॥ श्री०॥ ४॥ पांमे शिव सुख शास्वता, गणधर श्री पुंडरगिरि तिण कारणें, भगति करो निरभीक । श्री। ॥५॥ नमि ने विनमि सहोदरू, विद्याधर बलवंत ॥ सेनुंजा शिखर समोसस्या, जे गरुआ गुण वंत ॥ श्री०॥६॥थावच्चा मुनिवर सुक, सहस २ परिवार ॥ पंथग वयणे जागियो, सो सेलग अणगार ॥श्री० ॥७॥ पांडव पांच महाबली, सुणि जादव निरवाण ॥ ते सीधा सिद्धाचले, सुर नर करै वखाण ॥ श्री० ॥८॥ इम सीधा
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