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स्तवन-संग्रह। ऊपरै ॥ १२ ॥ एक कोडि श्रावका सुजगीस, लाख पांच सहस अड़तीस ॥ ए संघ चतुर्विध सहु जिनतणो, रंग विनय प्रणमें हित घणो ॥ १३ ॥
॥ तिरसठ शलाका-पुरुषों का स्तवन ॥ ॥ ढाल १ ॥ धरम महारथ सारथ सारं एदेशी ॥
सदगुरु चरण कमल मन धारं, त्रेसठ उत्तम नर अधिकारं पभणसु श्रुत अनुसारं ॥ जेहने नाम लियै निसतारं, आपण सफल हुवै अवतारं पामीजै भव पारं ॥१॥ ऋषभ अजित संभव अभिनंदन, सुमति पदमप्रभु नयनानंदन, सत्तम तेम सुपास ॥ चंद्रप्रभूने सुविध शीतल जिन श्रेयांस, वासुपूज्य जिन सुरमणि, विमल गुणेकर वास ॥ २ ॥ अनंत धर्म श्री शांति जिनेसर, कुं.
थुनाथ अर मल्लि सुहंकर, मुनिसुव्रत नमि नेम॥ पार्श्व वीर ए जिन चोवीस ॥ जग वच्छल जगगुरु जगदीस, प्रणमीजै धर प्रेम ॥३॥
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